रविवार, दिसंबर 07, 2008

प्रकाश बादल की दो ग़ज़लें

शिमला में युवा पत्रकार एवं चर्चित गजलकार श्री प्रकाश बादल की चंद गजलों से रू-ब-रू होने का सुअवसर मिला। ब्लाग की दुनिया में इनकी सक्रियता प्रेरित करती हैं। पेश है श्री बादल की दो गजलें-


1.
शिवालों मस्जिदों को छोड़ता क्यों नहीं।

खुदा है तो रगों में दौड़ता क्यों नहीं।

लहूलुहान हुए हैं लोग तेरी खातिर,

खामोशी के आलम को तोड़ता क्यों नहीं।

कहदे कि नहीं है तू गहनों से सजा पत्थर,

आदमी की ज़हन को झंझोड़ता क्यों नहीं,

पेटुओं के बीच कोई भूखा क्यों

अन्याय की कलाई मरोड़ता क्यों नहीं।

झुग्गियां ही क्यों महल क्यों नहीं,

बाढ़ के रुख को मोड़ता क्यों नहीं।

2.

जब हों जेबें खाली साहब।

फिर क्या ईद दीवाली साहब।

तिनका - तिनका जिसने जोड़ा,

वो चिडिया डाली-डाली साहब।

सब करतब मजबूरी निकलेँगे,

जो बंदर से आंख मिला ली साहब।

सबकी है कंक्रीटी भाषा,

अपनी तो हरियाली साहब।

मौसम ने सब रंग धो दिये,

सारी भेडें काली साहब।

आधार की बातें, झांसे उसके,

दो बैंगन को थाली साहब।

जब अच्छे से जांचा - परखा,

रिश्ते निकले जाली साहब।