मंगलवार, अगस्त 19, 2008

जलस्तर, सेंसे स और बेपरवाह सरकारें


कृषि प्रधान देश भारत के कई प्रदेशों की जनता लंबे समय से इस बात को लेकर परेशान थी कि वहां धरती का जलस्तर लगातार नीचे जा रहा है। उन्हीं प्रदेशों की जनता के सामने इस समय नई परेशानी यह है कि नदियों का लगातार बढ़ता जलस्तर बाढ़ के रूप में कहर ढा रहा है। जलस्तर का यह दो रूप सेंसे स की तरह कभी ऊपर तो कभी नीचे जाकर परेशान कर रहा है। सेंसे स को केंद्र सरकार ने विदेश के बड़े निवेशकों के हाथों का खिलौना बना दिया है, जिसमें देश के मध्यमवर्गीय निवेशक की कमर टूट रही है। तो दूसरी ओर जलस्तर को पूरी तरह भगवान भरोसे छोड़ दिया है, जिसमें मध्यमवर्गीय किसानों और गरीबों का दम निकल रहा है। देश में सरकारी स्तर पर कहीं ऐसी कोशिश नहीं दिखती कि बरसात के बढ़े जलस्तर (बाढ़ के पानी) को संरक्षित कर गर्मी में नीचे जाते जलस्तर को रोका जा सके। निजी तौर पर कुछ संस्थाएं और संत जरूर कहीं-कहीं अलख जगाते दिखते हैं, लेकिन उनका यह प्रयास भी सरकारी मदद के बिना एक कोने तक सीमित रह जाता है।
देश का एक समृद्ध प्रदेश है पंजाब, लेकिन यहां की हालत भी चिंताजनक है। अधिक फसल के लिए यहां के किसान खेती के आधुनिक साधनों से भूजल का अंधाधुंध दोहन कर रहे हैं। ऐसे में प्रदेश के घटते भूजलस्तर को लेकर कृषि वैज्ञानिक, समाजसेवी संस्थाएं ही नहीं सरकारी नुमाइंदे भी भाषणों में चिंतित दिखते हैं। दूसरी ओर सूबे में बिछा नहरों का जाल सालों से सफाई के लिए फंड आबंटित नहीं होने के कारण दम तोड़ रहा है, जिनमें बाढ़ के पानी को काफी हद तक संरक्षित कर भूजल के दोहन को कम किया जा सकता है। प्रदेश की जनता इस समय बाढ़ की आपदा से जूझ रही है। बारिश थमने के साथ नदियों का जलस्तर नीचे जाएगा, गांवों से पानी निकल जाएगा, लोग फिर खेती में जुट जाएंगे और घटते भूजलस्तर की चिंता फिर सताने लगेगी... आखिर कब तक?

गुरुवार, अगस्त 07, 2008

हम कब बनाएंगे एक 'असली` नोट?


गर्व से कहो हम भारतीय हैं। चंद दिनों बाद हम अपनी आजादी की ६१ वीं सालगिरह भी मनाने जा रहे हैं। गर्व करने के लिए दावे बड़े-बड़े हैं। इन ६१ सालों में हमने अंतरिक्ष में मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई, ताकि पूरी दुनिया पर नजर रखी जा सके। अत्याधुनिक रक्षा उपकरण से सीमा पर चौकसी बढ़ाई, ताकि पड़ोसी परिंदा भी पर मार सके। अपने करोड़ों देशवासियों के हाथों में कंप्यूटर और मोबाइल फोन थमाया। लेकिन... कड़वी हकीकत यह भी है कि इन ६१ सालों में हम एक ऐसा नोट नहीं बना सके, जिसे दावे के साथ कहा जा सके कि यह 'असली` है। खून पसीने की कमाई के बदले मिलने वाले थोड़े से नोट को हर आम भारतीय बार-बार उलट-पलट कर देखता है कि कहीं यह जाली तो नहीं। नोट घर ले आने के बाद भी शक की गुंजाइश बनी ही रह जाती है। उत्तर प्रदेश में भारतीय स्टेट बैंक की डुमरियागंज शाखा में स्थित आरबीआई के करेंसी चेस्ट से करोड़ों रुपये के जाली नोट मिलना यह साबित करता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था को खोखला करने के प्रयास में जुटे आतंकी संगठन अपने मंसूबे में कामयाब हो रहे हैं। बताया जाता है कि एसबीआई की इस करेंसी चेस्ट में करीब १८६ करोड़ रुपये हैं और बुधवार तक बहुत थोड़े से नोटों की जांच में ही करोड़ों के जाली नोट मिल चुके हैं। यदि आरबीआई के कुछ और करेंसी चेस्ट में आतंकी संगठनों की घुसपैठ हो चुकी है, तो पूरा गोरखधंधा अरबों का हो सकता है। इस मामले में गिरफ्तार चर्चित कैशियर सुधार त्रिपाठी उर्फ बाबा तो एक मोहरा ही लगता है, इतना बड़ा गोरखधंधा अंतरराष्ट्रीय साजिश के बिना संभव नहीं है। फिलहाल इसमें दाऊद इब्राहिम और उसके नेटवर्क का हाथ होने की आशंका जताई जा रही है। पुलिस ने भी शक जताया है कि दूसरे राष्ट्रीयकृत बैंकों के अलावा छोटे जिलों मंे स्थित निजी बैंकों को भी आईएसआई के गुरगों ने निशाना बना रखा है। ऐसे में हर भारतीय के मन को यह सवाल झकझोर रहा है कि आखिर कब तक पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई और उसकी गोद में बैठे भारत से भागे आतंकी अपने मंसूबों में कामयाब होते रहेंगे? कब तक हम खून-पसीने की कमाई के बदले विदेश में छपे जाली नोट पाते रहेंगे? आखिर कब हम इतने सक्षम होंगे कि हमारी अर्थव्यवस्था में कोई सेंध लगा सके?