गुरुवार, अगस्त 07, 2008

हम कब बनाएंगे एक 'असली` नोट?


गर्व से कहो हम भारतीय हैं। चंद दिनों बाद हम अपनी आजादी की ६१ वीं सालगिरह भी मनाने जा रहे हैं। गर्व करने के लिए दावे बड़े-बड़े हैं। इन ६१ सालों में हमने अंतरिक्ष में मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई, ताकि पूरी दुनिया पर नजर रखी जा सके। अत्याधुनिक रक्षा उपकरण से सीमा पर चौकसी बढ़ाई, ताकि पड़ोसी परिंदा भी पर मार सके। अपने करोड़ों देशवासियों के हाथों में कंप्यूटर और मोबाइल फोन थमाया। लेकिन... कड़वी हकीकत यह भी है कि इन ६१ सालों में हम एक ऐसा नोट नहीं बना सके, जिसे दावे के साथ कहा जा सके कि यह 'असली` है। खून पसीने की कमाई के बदले मिलने वाले थोड़े से नोट को हर आम भारतीय बार-बार उलट-पलट कर देखता है कि कहीं यह जाली तो नहीं। नोट घर ले आने के बाद भी शक की गुंजाइश बनी ही रह जाती है। उत्तर प्रदेश में भारतीय स्टेट बैंक की डुमरियागंज शाखा में स्थित आरबीआई के करेंसी चेस्ट से करोड़ों रुपये के जाली नोट मिलना यह साबित करता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था को खोखला करने के प्रयास में जुटे आतंकी संगठन अपने मंसूबे में कामयाब हो रहे हैं। बताया जाता है कि एसबीआई की इस करेंसी चेस्ट में करीब १८६ करोड़ रुपये हैं और बुधवार तक बहुत थोड़े से नोटों की जांच में ही करोड़ों के जाली नोट मिल चुके हैं। यदि आरबीआई के कुछ और करेंसी चेस्ट में आतंकी संगठनों की घुसपैठ हो चुकी है, तो पूरा गोरखधंधा अरबों का हो सकता है। इस मामले में गिरफ्तार चर्चित कैशियर सुधार त्रिपाठी उर्फ बाबा तो एक मोहरा ही लगता है, इतना बड़ा गोरखधंधा अंतरराष्ट्रीय साजिश के बिना संभव नहीं है। फिलहाल इसमें दाऊद इब्राहिम और उसके नेटवर्क का हाथ होने की आशंका जताई जा रही है। पुलिस ने भी शक जताया है कि दूसरे राष्ट्रीयकृत बैंकों के अलावा छोटे जिलों मंे स्थित निजी बैंकों को भी आईएसआई के गुरगों ने निशाना बना रखा है। ऐसे में हर भारतीय के मन को यह सवाल झकझोर रहा है कि आखिर कब तक पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई और उसकी गोद में बैठे भारत से भागे आतंकी अपने मंसूबों में कामयाब होते रहेंगे? कब तक हम खून-पसीने की कमाई के बदले विदेश में छपे जाली नोट पाते रहेंगे? आखिर कब हम इतने सक्षम होंगे कि हमारी अर्थव्यवस्था में कोई सेंध लगा सके?

1 टिप्पणी:

अबरार अहमद ने कहा…

सही कहा सर। कैसे हैं। क्या हाल हैं जालंधर के।