मंगलवार, फ़रवरी 16, 2010

कमतर क्यों आंके जाते हैं नक्सली हमले?

पश्चिम बंगाल में अब तक के सबसे बड़े हमले में २४ जवानों की मौत
पुणे की जर्मन बेकरी में शनिवार शाम हुए धमाके ने नौ लोगों को मौत की नींद सुला दिया। यह आतंकी घटना थी, इसलिए न केवल देश के सभी राजनीतिक दलों ने एक स्वर में इसकी निंदा की, बल्कि इसकी गूंज दुनियाभर में सुनाई दी। अमेरिका से लेकर आस्ट्रेलिया तक ने इसकी निंदा की। यह शुभ संकेत भी है, भारत में होने वाली बड़ी आतंकी घटना के खिलाफ अब दुनिया भर से एक आवाज सुनाई देने लगी है। वक्त आ गया है कि इस आवाज को अंजाम तक पहुंचाने के लिए कुछ बड़े देश मिलकर एक ठोस पहल करें।
फिलहाल मैं आपका ध्यान पुणे की आतंकी घटना के मात्र २२ घंटे बाद पश्चिम बंगाल में अद्र्धसैनिक बलों पर हुए अब तक के सबसे बड़े नक्सली हमले की ओर दिलाना चाहता हूं। खबरों के मुताबिक नक्सलियों ने सोमवार शाम साढ़े पांच बजे पश्चिमी मिदनापुर जिले के सिल्दा में १४ ईस्टर्न फ्रंटियर रायफल्स (ईएफआर) के कैंप पर हमला कर २४ जवानों को मार डाला। नक्सलियों ने बारूदी सुरंगों के धमाके से कैंप को तहस-नहस कर दिया, वहां आग लगा दी और जवानों के हथियार लूट लिए। कुछ जवानों को गोली मारी गई,, जबकि कुछ को जिंदा जला दिया गया। देर रात जिले के डीएम ने बताया कि अत्याधुनिक हथियारों से लैस सौ से अधिक नक्सली बाइक और कारों से सिल्दा कैंप पहुंचे। हमले के वक्त कैंप में ५१ जवान व अफसर खाना बनाने और अन्य काम में व्यस्त थे। शुरू में जवानों ने जवाबी गोलीबारी की, लेकिन बाद में नक्सली भारी पड़ गए। नक्सली नेता किशनजी ने हमले की जिम्मेदारी लेते हुए कहा है कि यह केंद्र सरकार के ऑपरेशन ग्रीन हंट का जवाब है। किशनजी ने दावा किया हमले में कम से कम ३५ जवान मारे गए और एके-४७, एसएलआर जैसे अत्याधुनिक हथियार लूटे गए।
ऐसे हमलों को हम कब तक यह कहते हुए नजरअंदाज करते रहेंगे कि नक्सली हमारे अपने हैं इसलिए उनके साथ नरमी से पेश आने की जरूरत है? क्या हम अपने देश के अंदर तालिबान का दूसरा रूप नहीं पाल रहे? अभी गिने चुने इलाकों में फैले नक्सली प्रशासन पर भारी पड़ रहे हैं, जब उनके पांव दूर-दूर तक जम जाएंगे तो उन्हें उखाड़ पाना और भी मुश्किल हो जाएगा। गांवों में यह कहावत आम है कि जब अपने पैर में मवाद आ जाए तो उसे काट देते हैं। नक्सलियों की ताजा हरकत देखने-सुनने के बाद मुझे यह कहने में कतई संकोच नहीं है कि हमारे कुछ अपने अब हमारे नहीं रह गए हैं। समय रहते उन्हें उनके अंजाम तक पहुंचा देना चाहिए, वरना देर हो जाएगी।

7 टिप्‍पणियां:

शरद कोकास ने कहा…

मुझे आपके ब्लॉग पर लिखे दुश्यंत के शेर ने आकर्षित किया है यह मेरा प्रिय शेर है । और आपका ब्लॉग भी इसके अनुरूप है ।

दीपक 'मशाल' ने कहा…

ye naxali bhi to seedhe sade aadiwasiyon ki aad me ye hamle karte hain.. jab karyawahi hoti hai to nirdosh mare aur pakde jate hain.. naxali bach nikalte hain..

राजीव रंजन प्रसाद ने कहा…

नक्सलियों को समर्थन देने वाले और उनके लिये कलम घसीटी करने वाले राष्ट्रद्रोही भी इस तरह के हमलों के लिये समान जिम्मेदार हैं। वे ही इन हमलों को क्रांति सिद्ध करने के लिये सिर पर पैर उठाये फिरते हैं। नक्सली केवल और केवल आतंकवादी हैं और जब तक यह सत्य पूरी गंभीरता के साथ स्वीकार नहीं किया जायेगा माहौल नहीं बदलेगा। मेरा मानना है कि न केवल नक्सली हमलों की सर्वदिशा भर्त्सना होनी चाहिये साथ ही साथ उन लेखकों की पुस्तकों/रचनाओं का सार्वजनिक बहिष्कार किया जाना चाहिये जो इन आतंकवादियों के समर्थन में खडे हैं।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

सरकारें आज ईमानदार हो जायें, कल से विनाश फैलाने वाले खत्म होने लगेंगे. सरकारें पूरी तरह से दोषी हैं समस्याओं को उन्मूलित न करने के लिये, फिर चाहे वह भ्रष्टाचार हो, आतंकवाद हो या नक्सलवाद. बाकी भाई लोग लिख ही चुके हैं. आप से सहमत.

एन. राम ने कहा…

hum sabko prarthna karni chahiye ki aise logon ko bhawan sadbudhi den...


aapke blog ki to baat hi kya hai...

रंजना ने कहा…

भाई जी, अपने देश में पुलिस या जवानों को वेतन देकर इसलिए रखा जाता है कि वे नक्सलियों की रक्त पिपासा को शांत कर सकें...
तो जिसको रखा ही गया है मरने के लिए,उसके मरने जीने पर कौन आएगा आवाज उठाने...

shikha varshney ने कहा…

अपराध और मासूमो की हत्या किसी भी रूप में क्षम्य नहीं हो सकती ...चाहे फिर वो नक्स्ल्ली हों या आतंकवादी .....आपकी बात से १००% सहमत