हिम्मत से सच कहो तो बुरा मानते हैं लोग, रो—रो के बात कहने की आदत नहीं रही। (दुष्यंत कुमार)
बुधवार, जून 10, 2009
कलावती का दर्द
सालभर पहले यूपीए सरकार के विश्वास मत पर भाषण के दौरान कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने संसद में महाराष्ट्र के एक गरीब किसान की विधवा कलावती की दुर्दशा का जिक्र क्या किया, वह देशभर के अखबारों में छा गई थीं। दरअसल कांग्रेस के युवराज ने कलावती की झोपड़ी में जाकर खुद को गरीबों का हमदर्द साबित करने की कोशिश की थी। राहुल की इस यात्रा से वास्तव में कलावती का तो कोई भला नहीं हुआ, राहुल ने विगत लोकसभा चुनाव में कुछ राज्यों के गरीबों की हमदर्दी जरूर बटोरी। झोपड़ी में रहने वाली कलावती को राहुल ने मकान के सपने दिखाए थे। एक साल अफसरों के चक्कर काटने के बाद भी उसकी मकान की बुनियाद नहीं पड़ी, हां अफसरशाही से टकराकर उसके सपने जरूर चूर-चूर हो गए। निराश कलावती राहुल से एक और मुलाकात की आस लेकर मंगलवार को दिल्ली पहुंची है। उम्मीद की जानी चाहिए कि राहुल से एक-दो दिन में उसकी दूसरी मुलाकात हो जाएगी और दोबारा सत्ता में लौटी कांग्रेस के युवराज इस बार उससे खोखले वादे नहीं करेंगे। कलावती ने पत्रकारों को अपना दुखड़ा सुनाते हुए कहा कि राहुल ने उसे घर दिलाने का भी वादा किया था। इस संबंध में वह अधिकारियों के दफ्तरों के चक्कर काट कर थक चुकी है, लेकिन कहीं से कोई ठोस जवाब नहीं मिल रहा। जब वह पंचायत अधिकारियों के पास जाती है तो वे कहते हैं कि बीडीओ से मिलो और जब बीडीओ से मिलती है तो जवाब होता है कि यह उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर है। इसलिए वह राहुल से फिर मिलकर एक प्रमाणपत्र लेना चाहती है, जिसे वह अफसरों को दिखा सके। इसके साथ ही वह चाहती है कि उसके गांव में कंप्यूटर की सुविधा वाला एक अंग्रेजी माध्यम स्कूल खोला जाए और चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई जाए।
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