शनिवार, अक्तूबर 04, 2008

आरक्षण के असली हकदारों से हक छीना

चुनावी तैयारी में जुटी मनमोहन सरकार हताशा में कुछ ऐसे उलटे-सीधे फैसले कर रही है जिसके लिए आने वाली पीढ़ियां उन्हें शायद ही माफ करे। केंद्रीय कैबिनेट ने शुक्रवार को 'अन्य पिछड़ा वर्ग` (ओबीसी) के ज्यादा से ज्यादा लोगों को सरकारी नौकरियों और शैक्षिणिक संस्थाओं में आरक्षण का लाभ देने के नाम पर क्रीमी लेयर की आय सीमा को सालाना 2.5 लाख रुपये से बढ़ाकर 4.5 लाख रुपये कर दिया है। ऐसा कर न केवल क्रीमी लेयर को आरक्षण के लाभ से बाहर रखने के सुप्रीम कोर्ट के निर्देश की काट निकाली गई है, बल्कि आरक्षण के असली हकदार पिछड़ों को इससे दूर करने की साजिश भी रची गई है।
ओबीसी क्रीमी लेयर के लिए सबसे पहले 1991 में एक लाख रुपये सालाना आय की सीमा तय की गई थी, जिसे 2004 में बढाकर
2.5 लाख रुपये किया गया था। अब इसे 4.5 लाख रुपये सालाना करने का मतलब यह है कि 37 हजार 5 सौ रुपये तक मासिक वेतन पाने वाले हाई प्रोफाइल बाप के कान्वेंट एजूकेटेड शहजादे भी आरक्षण के हकदार होंगे। फिर मजदूरी करने वाली मां के बेटों और झोपड़ियों में सपने बुनने वाले होनहारों के लिए तर की की राह पर दो कदम चलना भी मुश्किल हो जाएगा।
उच्च शिक्षण संस्थानों में खाली रह गई ओबीसी सीटों को अनारक्षित कोटे से भरने के सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद हड़बड़ी में लिया गया सरकार का यह फैसला खेदजनक है। सही रास्ता तो यह था कि समाज के पिछड़े लोगों को इस काबिल बनाया जाता कि ये सीटें खाली ही न रहतीं। लेकिन मनमोहन सिंह जैसे ग्लोबल अर्थशास्त्री से असली पिछड़ों के कल्याण की उम्मीद करना बेमानी ही लगती है। अब ज्यादातर बड़े अधिकारी और नेताओं के सौभाग्यशाली लाडले आरक्षण के मजे ले सकेंगे। आखिर पिछड़ा वर्ग के वोट बैंक पर दबदबा भी तो
2.5 लाख से ज्यादा आमदनी वाले 'पिछड़ों` का ही है।
गणित का सीधा सा सिद्धांत है, बड़ा तभी तक बड़ा है जबतक छोटा उससे छोटा बना रहे। यदि पिछड़े ही नहीं रहेंगे, तो पिछड़ों के नाम पर राजनीति की दुकान कैसे चलेगी। वोट बैंक का इतना बड़ा खजाना ऐसे थोड़े ही मिटने दिया जाएगा? और फिर असली पिछड़ों को छलने के लिए कांग्रेस के युवराज तो खेतों में मिट्टी ढो ही रहे हैं। युवराज की कलाबती की झोपड़ी में टूटी चारपाई की जगह यदि पलंग आ जाए तो वह फोटो कहां जाकर खिंचवाएंगे? उम्मीद की जानी चाहिए कि एक दिन आरक्षण के असली हकदार भी जागेंगे और तब न तो ये आरक्षण के ठेकेदार बचेंगे और न ही उनकी दुकानें।

12 टिप्‍पणियां:

डॉ .अनुराग ने कहा…

विचारणीय लेख !

सुधीर राघव ने कहा…

रंजन बाबू सही लिखा है।

Unknown ने कहा…

आप की बात से मैं पूरी तरह सहमत हूँ. यह वोट बेंक की राजनीति इस देश को बरबाद कर के रहेगी.

बेनामी ने कहा…

एकदम सही और सटीक विश्लेषण। आजादी के बाद से आरक्षण के नाम पर सिर्फ राजनीति हुई है। तभी तो वास्तविक पिछड़ों की हालत में खास सुधार नहीं हुआ है। उम्मीद है कि एक दिन आरक्षण के असली हकदार भी जागेंगे ...

अनिल कुमार वर्मा ने कहा…

रंजन भाई, मेरे ब्लॉग पर टिप्पणी करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया। आप लोगों की टिप्पणियां हौंसला बढ़ाती हैं। साथ ही लिखने की प्रेरणा देती है। आपके ब्लॉग पर ये लेख पढ़ा। सच ही कहा है आपने, आरक्षण की प्रथा ने देश में ज़हर घोलने का काम किया है। पिछड़े तो पिछड़े ही रह जा रहे हैं और अगड़े और अगड़ते जा रहे हैं। ज़रूरत झोपड़ी में पलने वाली उस प्रतिभा को निखारने और संवारने की है जो अभावों के चलते पलने बढ़ने से पहले ही दम तोड़ देती है लेकिन हमारे राजनेता भला ऐसा क्यों सोंचेगे। राजनीति की दुकान जो चलानी है। अच्छा और विचारणीय आलेख। बधाई।

वर्षा ने कहा…

अच्छा तो यही था कि आरक्षण ही न होता, एक समान शिक्षा प्रणाली लागू होती और सभी बच्चें शिक्षित हों ये सुनिश्चित किया जाता।

Richa Joshi ने कहा…

सही कहा है आपने-बड़ा रहने के लिए छोटे का और छोटा होते जाना जरूरी है।

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

आरक्षण जाति आधारित नहीं होना चाहिये
आपकी चिंता वाजिब
कर्णधारों को इस पर चिंतन करना चाहिये

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

तीर स्नेह-विश्वास का चलायें,
नफरत-हिंसा को मार गिराएँ।
हर्ष-उमंग के फूटें पटाखे,
विजयादशमी कुछ इस तरह मनाएँ।

बुराई पर अच्छाई की विजय के पावन-पर्व पर हम सब मिल कर अपने भीतर के रावण को मार गिरायें और विजयादशमी को सार्थक बनाएं।

प्रदीप मानोरिया ने कहा…

सार्थक आलेख के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आपके मेरे ब्लॉग पर पधारने का धन्यबाद कृपया पुन: पधारे मेरी नई रचना मुंबई उनके बाप की पढने हेतु सादर आमंत्रण

Dr. Ashok Kumar Mishra ने कहा…

chacha likha hai aapney.

राज भाटिय़ा ने कहा…

आप का लेख एक दम से बिलकुल सटिक है, काश बाकी लोग भी इसे समझे, ओर इन लोगो की राजनीति समझे ,जब लोग इन कमीनो की चाल समझने लगे समझो उस दिन से एक नया सुरज निकलेगा हमारे भारत मै, लेकिन एक कलावती को देख कर लोग भावनाओ मे बह जते है, ओ फ़िर से पांच साल के लिये गुलामी लिखवा लेते है
धन्यवाद