महाराष्ट्र में राज ठाकरे की गुंडागर्दी, चुपचाप उसका मुंह देखती मुंबई पुलिस और वोट बैंक के दबाव में अगल-बगल देखते राजनीतिक दलों के बीच पिस रहे हैं मेहनत कर मुंबई को आर्थिक राजधानी का खिताब दिलाने वाले उत्तर भारतीय। मराठियों और उत्तर भारतीयों का रिश्ता क्या सिर्फनफरत का है, दुश्मनी का है? इसके जवाब में प्रस्तुत है वरिष्ठ पत्रकार श्री निशीथ जोशी का एक आलेख--
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कोई राज ठाकरे को आइना तो दिखाए
इन दिनों मराठा माणुस का मसला फिर उबाल पर है। कभी भाषा के नाम पर, तो कभी संस्कृति के नाम पर अब मुंबई में अकसर उत्तर भारतीयों पर गाज गिरने लगी है। मराठा माणुस के नाम पर राजनीति करने वालों को यह भी पता नहीं कि शहीद भगत सिंह और सुखदेव के साथ फांसी के फंदे को जिस वीर मराठा ने चूमा था, उस शहीद की जन्मशती चंद दिनों पहले निकल गई। उनका स्मरण करने की बात किसी को याद नहीं आई। वैसे मराठा माणुस की लडाई लडने वालों को याद कराना चाहूंगा कि जब से भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने शहादत का चोला पहना था, तब से किसी ने भी उन्हें अलग करने की जुर्रत नहीं की। अंगरेज तो कर ही नहीं पाए, पंजाबियों ने भी ऐसा नहीं होने दिया। फिर आप क्या करेंगे?जया बच्चन द्वारा हिंदी की वकालत करने पर इन्हें गुस्सा भी आता है। लेकिन क्या उन्हें पता नहीं है कि अयोध्या में जन्मे श्रीराम के सच्चे भक्त, सेवक और मित्र हनुमान महाराष्ट्र के नासिक जिले के आंजनेय क्षेत्र की अंजना माता के पुत्र थे? अगर थे, तो राम राज्य से चले आ रहे उत्तर भारत और महाराष्ट्र के रिश्ते को क्या ये चंद राजनेता तोड सकेंगे। जिन गणपति देव का पूजन महाराष्ट्र के घर-घर में होता है, उनके माता-पिता शिव-पार्वती का निवास भी तो उत्तर भारत में है। जिन श्लोकों से गणपति का पूजन होता है, उनकी रचना भी उत्तर भारत में ही हुई है। दो कदम आगे बढें, तो जिन भगवान कृष्ण की जन्माष्टमी पर पूरा महाराष्ट्र दही-हांडी उत्सव में डूब जाता है, उनकी जन्म-भूमि भी उत्तर भारत में ही है। अगर यह सब सत्य है, तो उत्तर भारत और महाराष्ट्र के लोगों के बीच घृणा के बीज क्यों बोए जा रहे हैं?
मराठा माणुस के ठेकेदारों को यह नहीं भूलना चाहिए कि शिवाजी ऐसे वीर मराठा थे, जिन्होंने मुगलों के अत्याचार के खिलाफ जो जंग लडी थी, उसमें उत्तर भारतीयों और मराठों के बीच कोई भेद नहीं किया था। इसीलिए शिवाजी की सेना में उत्तर भारत के ऐसे अनेक योद्धा थे, जो उनके लिए हर पल अपने प्राण कुर्बान करने को तैयार रहते थे। क्या ऐसी कमाई करने की क्षमता आप में है? महिलाओं के लिए छत्रपति शिवाजी के मन में बहुत आदर था। नारी को वह मां, बहन और बेटी के रूप में देखते थे। जब 1657 में शिवाजी के कट्टर दुश्मन औरंगजेब के एक गवर्नर मुल्ला अहमद की पुत्रवधू गौहर बानो को उनके कुछ सैनिक उठा लाए थे, तो उसे बाइज्जत उसके घर पहुंचाया था। यह इतिहास बच्चों को पढाया जा रहा है। पता नहीं, राज ठाकरे ने पढा या नहीं। अगर नहीं पढा, तो उन्हें खुद को शिवाजी के पदचिह्नों पर चलने वाला मराठा कहने का हक नहीं है। जया बच्चन उनकी मां की ही उम्र की होंगी, फिर ऐसी महिला के लिए राज ठाकरे जिस तरह के शब्दों का उपयोग करते हैं, उसे सुनकर उन्हें मराठा संस्कृति का संरक्षक कैसे मान लिया जाए?
ठीक है। आतंक और डर से कोई आपसे माफी मांग लेगा या फिर चुप्पी साध लेगा। लेकिन किसी से जबरदस्ती सम्मान आप नहीं ले सकते। अमिताभ बच्चन माफी मांगकर अपने बिग बी के कद से और बडे हो गए। वह अपने चहेतों के दिलों पर राज करते हैं। आप सारी ताकत लगाकर भी उनके चहेतों के दिलों से उनके सम्मान और प्यार को कम नहीं कर सकते। इसके उलट आप अपने बारे में कुछ और नफरत ही पैदा करा देते हैं।
रही बात फिल्म नगरी मुंबई में होने की, तो मत भूलिए कि वह बॉलीवुड इसलिए बन सकी, क्योंकि उत्तर भारतीय कलाकारों ने भी उसे अपने फन से सींचा है। चाहे वह पृथ्वीराज कपूर का खानदान हो या फिर नरगिस दत्त का। चिर युवा देवानंद हों या महान नायक दिलीप कुमार। मोहम्मद रफी हों या मजरूह सुल्तानपुरी। गीतकार गोपालदास नीरज रहे हों या साहिर लुधियानवी। आज भी बॉलीवुड में जिनका सिक्का चलता है, वह बच्चन परिवार, शाहरुख खान और अक्षय कुमार भी उत्तर भारतीय हैं। अगर इन सबको आपने फिल्म नगरी से निकालने की जुर्रत की, तो क्या आपकी राजनीति बचेगी? रही बात उत्तर भारत और उत्तर भारतीयों की, तो मत भूलिए कि जब मुगलों ने मराठों पर आक्रमण किया था, तो प्राण और धर्म की रक्षा के लिए महाराष्ट्र से पलायन करने वाले हम जैसे कितने चितपावन जोशी, पंत या काले के पूर्वजों को उत्तर भारत की भूमि ने ही अपनी गोद में जगह देकर उनकी पीढियों को सींचा है और सींच रही है। अब बंद कीजिए यह बकवास। नहीं तो लोकतंत्र आपको अपने ‘उचित’ स्थान पर पहुंचा देगा।
निशीथ जोशी
(दैनिक अमर उजाला से साभार)
इन दिनों मराठा माणुस का मसला फिर उबाल पर है। कभी भाषा के नाम पर, तो कभी संस्कृति के नाम पर अब मुंबई में अकसर उत्तर भारतीयों पर गाज गिरने लगी है। मराठा माणुस के नाम पर राजनीति करने वालों को यह भी पता नहीं कि शहीद भगत सिंह और सुखदेव के साथ फांसी के फंदे को जिस वीर मराठा ने चूमा था, उस शहीद की जन्मशती चंद दिनों पहले निकल गई। उनका स्मरण करने की बात किसी को याद नहीं आई। वैसे मराठा माणुस की लडाई लडने वालों को याद कराना चाहूंगा कि जब से भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने शहादत का चोला पहना था, तब से किसी ने भी उन्हें अलग करने की जुर्रत नहीं की। अंगरेज तो कर ही नहीं पाए, पंजाबियों ने भी ऐसा नहीं होने दिया। फिर आप क्या करेंगे?जया बच्चन द्वारा हिंदी की वकालत करने पर इन्हें गुस्सा भी आता है। लेकिन क्या उन्हें पता नहीं है कि अयोध्या में जन्मे श्रीराम के सच्चे भक्त, सेवक और मित्र हनुमान महाराष्ट्र के नासिक जिले के आंजनेय क्षेत्र की अंजना माता के पुत्र थे? अगर थे, तो राम राज्य से चले आ रहे उत्तर भारत और महाराष्ट्र के रिश्ते को क्या ये चंद राजनेता तोड सकेंगे। जिन गणपति देव का पूजन महाराष्ट्र के घर-घर में होता है, उनके माता-पिता शिव-पार्वती का निवास भी तो उत्तर भारत में है। जिन श्लोकों से गणपति का पूजन होता है, उनकी रचना भी उत्तर भारत में ही हुई है। दो कदम आगे बढें, तो जिन भगवान कृष्ण की जन्माष्टमी पर पूरा महाराष्ट्र दही-हांडी उत्सव में डूब जाता है, उनकी जन्म-भूमि भी उत्तर भारत में ही है। अगर यह सब सत्य है, तो उत्तर भारत और महाराष्ट्र के लोगों के बीच घृणा के बीज क्यों बोए जा रहे हैं?
मराठा माणुस के ठेकेदारों को यह नहीं भूलना चाहिए कि शिवाजी ऐसे वीर मराठा थे, जिन्होंने मुगलों के अत्याचार के खिलाफ जो जंग लडी थी, उसमें उत्तर भारतीयों और मराठों के बीच कोई भेद नहीं किया था। इसीलिए शिवाजी की सेना में उत्तर भारत के ऐसे अनेक योद्धा थे, जो उनके लिए हर पल अपने प्राण कुर्बान करने को तैयार रहते थे। क्या ऐसी कमाई करने की क्षमता आप में है? महिलाओं के लिए छत्रपति शिवाजी के मन में बहुत आदर था। नारी को वह मां, बहन और बेटी के रूप में देखते थे। जब 1657 में शिवाजी के कट्टर दुश्मन औरंगजेब के एक गवर्नर मुल्ला अहमद की पुत्रवधू गौहर बानो को उनके कुछ सैनिक उठा लाए थे, तो उसे बाइज्जत उसके घर पहुंचाया था। यह इतिहास बच्चों को पढाया जा रहा है। पता नहीं, राज ठाकरे ने पढा या नहीं। अगर नहीं पढा, तो उन्हें खुद को शिवाजी के पदचिह्नों पर चलने वाला मराठा कहने का हक नहीं है। जया बच्चन उनकी मां की ही उम्र की होंगी, फिर ऐसी महिला के लिए राज ठाकरे जिस तरह के शब्दों का उपयोग करते हैं, उसे सुनकर उन्हें मराठा संस्कृति का संरक्षक कैसे मान लिया जाए?
ठीक है। आतंक और डर से कोई आपसे माफी मांग लेगा या फिर चुप्पी साध लेगा। लेकिन किसी से जबरदस्ती सम्मान आप नहीं ले सकते। अमिताभ बच्चन माफी मांगकर अपने बिग बी के कद से और बडे हो गए। वह अपने चहेतों के दिलों पर राज करते हैं। आप सारी ताकत लगाकर भी उनके चहेतों के दिलों से उनके सम्मान और प्यार को कम नहीं कर सकते। इसके उलट आप अपने बारे में कुछ और नफरत ही पैदा करा देते हैं।
रही बात फिल्म नगरी मुंबई में होने की, तो मत भूलिए कि वह बॉलीवुड इसलिए बन सकी, क्योंकि उत्तर भारतीय कलाकारों ने भी उसे अपने फन से सींचा है। चाहे वह पृथ्वीराज कपूर का खानदान हो या फिर नरगिस दत्त का। चिर युवा देवानंद हों या महान नायक दिलीप कुमार। मोहम्मद रफी हों या मजरूह सुल्तानपुरी। गीतकार गोपालदास नीरज रहे हों या साहिर लुधियानवी। आज भी बॉलीवुड में जिनका सिक्का चलता है, वह बच्चन परिवार, शाहरुख खान और अक्षय कुमार भी उत्तर भारतीय हैं। अगर इन सबको आपने फिल्म नगरी से निकालने की जुर्रत की, तो क्या आपकी राजनीति बचेगी? रही बात उत्तर भारत और उत्तर भारतीयों की, तो मत भूलिए कि जब मुगलों ने मराठों पर आक्रमण किया था, तो प्राण और धर्म की रक्षा के लिए महाराष्ट्र से पलायन करने वाले हम जैसे कितने चितपावन जोशी, पंत या काले के पूर्वजों को उत्तर भारत की भूमि ने ही अपनी गोद में जगह देकर उनकी पीढियों को सींचा है और सींच रही है। अब बंद कीजिए यह बकवास। नहीं तो लोकतंत्र आपको अपने ‘उचित’ स्थान पर पहुंचा देगा।
निशीथ जोशी
(दैनिक अमर उजाला से साभार)
11 टिप्पणियां:
Ranjanji, joshiji ka lekh uchh koti ka hai. unhonne sahi dhang se is mudde ko uthaya hai. samman kisi se bhi jabardasti nahin paya ja sakta.Pata nahin raj thakre ki dadagiri kab khatm hogi.
बहुत ही सुन्दर कहा हे आप ने , यह राज ठाकरे कोई नेता वेता नही एक गुण्डा हे , जो हमारी सरकार की खुदगर्जी के कारण अपनी ओकात भुल गया हे.
धन्यवाद
वाकई बहुत शानदार प्रस्तुति...
आंख खुल जानी चाहिये इन तथाकथित रानेताऒं की.
आपको एवं लेखक को बधाई..
bahut sahi lekhan.....
aur saath me shukriyaa mere is naye blog par aane ke liye
sir ji, sahi kaha aapne. aabhar
सादर नमस्ते !
कृपया निमंत्रण स्वीकारें व अपुन के ब्लॉग सुमित के तडके (गद्य) पर पधारें। "एक पत्र आतंकवादियों के नाम" आपकी टिप्पणी को प्रतीक्षारत है।
सर हमारे नेता आज राजनीति करने से बाज आ जाते तो हमारे देश में इस तरह की अस्थिरता कभी आती ही नहीं. इनके लिए आज बड़ी से बड़ी गाली भी छोटी है. ये भूल गये है की आज हमारा देश आज़ाद हुआ है तो उसकी सिर्फ़ और सिर्फ़ एकमात्र वजह है हमारी एकता. शहीदों ने बिना भेदभाव के, न तो जाति को देखा, न ही धर्म को देखा और न ही किसी क्षेत्र विशेष को उन्हें तो सोते-जागते, उठते-बैठते बस यही दिखाई देता था और वह थी इस देश की आजादी. अगर वो कही से हमें देख रहे होंगे तो उन्हें भी शर्म आ रही होगी कि हमने अपनी जन किनके लिए गँवा दी, जो आज़ादी के काबिल ही न थे. सर मई आपके ब्लॉग पर तांक-झांक करने आता रहूँगा. मेरे प्रश्न का उत्तर देने के लिए धन्यवाद और आशीर्वाद दीजियेगा कि मैं जैसे हूँ वैसा ही बना रहूँ.
अच्छा आलेख है। राज ठाकरे जैसे लोगों को देश में विद्वेष फैलाने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए।
bahut achcha vishleshan hai
बहुत शानदार प्रस्तुति
सटीक और सार्थक आलेख धन्यबाद आपका हिन्दी ब्लॉग जगत में स्वागत है ठाकरे जी के बारे में मेरे विचार जानने के लिए मेरी कविता हिन्दी पर प्रश्नवाचक ? पढ़ें
आपको मेरे ब्लॉग पर पधारने का स्नेहिल आमंत्रण है
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