नवरात्र की पूर्व संध्या पर सोमवार को गुजरात के मोडासा (साबरकांठा) और महाराष्ट्र के मालेगांव में हुए विस्फोटों में सात लोगों की मौत हो गई और सौ से अधिक लोग घायल हो गए। स्पष्ट है दिल्ली के चंद दिनों बाद ही आतंकियों ने गुजरात और महाराष्ट्र को निशाना बनाया है। दोनों स्थानों पर धमाकों में मोटरसाइकिल का इस्तेमाल किया गया। इसी दिन उड़ीसा के हिंसा प्रभावित कंधमाल के कई कस्बों में भी कम क्षमता वाले कई धमाके हुए, हालांकि इनमें कोई हताहत नहीं हुआ। उधर, अहमदाबाद के कालूपुर में 17 देसी बम बरामद किए गए।
संकेत साफ हैं, हिंदुस्तान में आतंकवाद बड़े शहरों या किसी खास रीजन तक सीमित नहीं रहा। कुछ समय पहले तक यहां आतंकवाद रीजनल था। कभी कश्मीर में था तो कभी पंजाब में। कभी नार्थ ईस्ट में था तो कभी कहीं और। लेकिन अब यह कस्बों तक पांव पसार रहा है। रोज नए खुलासे हो रहे हैं, जिनमें आतंक के तार नए-नए शहरों से जुड़ते नजर आ रहे हैं। अगर हालात यही रहे तो यह जल्दी ही पूरे देश में फैल जाएगा।
केंद्रीय गृह मंत्रालय की ही मानें तो जयपुर विस्फोट के बाद 140 दिनों में 44 विस्फोट हुए हैं, जिनमें 152 लोग मारे गए और करीब 450 घायल हुए हैं। दुखद यह है कि आतंकी गतिविधियों की सर्वाधिक मार झेलने के बावजूद हम आतंकवाद को मात देने की कोई कारगर रणनीति नहीं बना सके हैं। आतंकवाद से लड़ने के लिए देश में राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर कोई सर्वसम्मति नहीं बना सके हैं। आम आदमी की बात तो दूर, राष्ट्रीय स्तर के प्रमुख राजनेता तक इस बात पर एकमत नहीं हैं कि आतंकवाद के मामले में देश को कितनी सख्ती बरतनी चाहिए। देश को पोटा चाहिए या नहीं, इसे लेकर विभिन्न नेताओं के रोज विरोधाभासी बयान आ रहे हैं।
आतंकवाद से लड़ने को लेकर दुनियाभर में भारत की छवि एक नरम राष्ट्र की है। बड़े आतंकवादी और माफिया सरगना भी पकड़े जाने के बाद सालों तक हमारी जेलों में मेहमान बनकर मुफ्त की रोटियां चट करते रहते हैं। इस दौरान उन्हें छुड़ाने के लिए उनके गुर्गे तरह-तरह के तिकड़म आजमाते हैं। दूसरी ओर माफिया सरगना जेल से ही राजनीति में किस्मत आजमाने के सपने पालने लगते हैं। देश में लंबे समय से एक ऐसी न्यायिक व्यवस्था की मांग उठती रही है, जिसमें बड़े अपराधियों की सजा का फैसला जल्द-से-जल्द हो सके। विस्फोटकों में इस्तेमाल होने वाली सामग्रियों को रखने, बेचने, एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने और इस्तेमाल करने संबंधी कानून में भी तत्काल संशोधन की जरूरत है।
आतंकियों का न कोई मजहब होता है, न ही देश। वे सिर्फ और सिर्फ मानवता के दुश्मन होते हैं। इसलिए समय की मांग है कि सभी दल वोट बैंक की राजनीति छोड़कर और सभी संस्थाएं निजी हित को परे रखकर आतंकवाद को कुचलने के लिए तुरंत एक राय कायम कायम करें।
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10 टिप्पणियां:
bilkul sahee !
आम आदमी को आवाज़ उठाने के साथ साथ जागरूक भी होना होगा । गली मुहल्लों में युवाओं को चौकसी रखनी होगी कि उनके इलाके में कौन कौन आ जा रहा है । और कडे कानून ही नही उनपर तुरंत अमल होना भी जरूरी है मसलन देशद्रोहियों को तुरंत सजा हो । हो सकता है कि गेहूं के सात घुन पिसे पर उससे कितने ज्यादा बेगुनाह तो आतंकी ही मार रहे हैं ।
सही है!
आजकल युवा वर्ग बाज़ार के दबाव में है | उसकी अपनी स्पष्ट विचारधारा नहीं है | ऐसा लग रहा है कि हम आतंकवाद की लडाई में कोई विशेष प्रगति नहीं कर रहे हैं |
एकदम पते की बात। आतंकवादियों का कोई धर्म नहीं होता।
अंकल ऐसी बाते लिखोगे तो लोग कहेगे देखो देखो धर्मनिरपेक्ष नही है ,आतंकवाद की बात करता है
समय की मांग है कि सभी दल वोट बैंक की राजनीति छोड़कर और सभी संस्थाएं निजी हित को परे रखकर आतंकवाद को कुचलने के लिए तुरंत एक राय कायम कायम करें।
aaye din ho rahe hain damke, fir bhi so rahi hai sarkar.
आतँकवाद से लडना बहुत मुश्किल काम है समूचे भारत को कटीबध्ध होना जरुरी है !
- लावण्या
sach hai, dhnyabad
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