शनिवार, सितंबर 13, 2008

हिंदी दिवस पर औपचारिकताओं से आगे बढ़ना होगा

ठीक एक दिन बाद फिर निभाई जाएगी औपचारिकताएं हिंदी दिवस मनाने की। एक ऐसी राष्ट्रभाषा की, जिसे जो चाहे प्रतिबंधित कर दे। आजादी के ६१ वर्षों में हिन्दी को इतना सम्मान भी नहीं मिल सका कि इसे कोई भी राज्य या संगठन प्रतिबंधित या अपमानित नहीं कर सके। बापू और लाल बहादुर शास्त्री ने जोर देकर कहा था कि हिंदी ही राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोकर रख सकती है। लेकिन आजादी के बाद सत्ता का सुख भोगने वालों ने राष्ट्रभाषा की चिंता कभी नहीं की। किसी ने यदि की भी, तो प्रयास ठोस साबित नहीं हुए। यह और बात है कि इस दौरान हिंदी का लगातार विस्तार हुआ है, लेकिन इसके लिए सरकारी प्रयास नहीं बाजार की नीतियां बधाई के पात्र हैं। पिछले कुछ वर्षों में हिंदी के चैनल, एफएम रेडियो और हिंदी अखबारों का अत्यंत तेजी से विस्तार हुआ, लेकिन राष्ट्रभाषा आज भी दयनीय स्थिति में नजर आती है।
हालत यह है कि महाराष्ट्र में हिंदी में बोलने पर न केवल अभिनेत्री जया बच्चन, बल्कि उनके पति सदी के महानायक कहलाने वाले अमिताभ बच्चन भी बार-बार माफी मांग रहे हैं। (ऐसा महानायक पहले कभी नहीं सुना था)। मुंबई में व्यापारियों को मराठी में बोर्ड लगाने के लिए मजबूर किया जा रहा है। दूसरी ओर दो दिन पहले ही पंजाब विधानसभा में पंजाब दफ्तरी भाषा संशोधन ए ट २००८ और पंजाब में पंजाबी भाषा एवं अन्य भाषाओं को पढ़ाने संबंधी बिल-२००८ पारित हुआ है। इस संशोधन के बाद पंजाब सरकार के सभी कार्यालयों, सरकारी क्षेत्र के दायरे में आने वाले बोर्ड, कारपोरेशन और लोकल बाडी सहित स्कूलों, कालेजों और विश्वविद्यालयों में सारा कामकाज पंजाबी में ही होगा। साथ ही स्कूलों में पहली से दसवीं तक पंजाबी पढ़ना अनिवार्य हो गया है। अगर कोई इसका उल्लंघन करता है तो उस पर मोटा जुर्माना किया जाएगा।
इस बात पर किसी को आपत्ति नहीं हो सकती कि महाराष्ट्र में मराठी, पंजाब में पंजाबी को सम्मान मिले। लेकिन भारत में ही किसी प्रदेश में हिंदी बोलने वालों को माफी मांगनी पड़े या किसी प्रदेश में सरकारी कामकाज को सिर्फ प्रदेश की भाषा तक सीमित कर दिया जाए, तो राष्ट्रीय अखंडता खतरे में पड़ सकती है। भाषा के आधार पर क्षेत्रीयता के स्वर मुखर होंगे। राज्य के सरकारी दस्तावेज को दूसरे राज्यों के लोग चाह कर भी नहीं पढ़ पाएंगे। कुल मिलाकर एक वृहत राष्ट्र भारत की अवधारणा पर संकट पैदा हो सकता है।
ऐसे में जरूरत इस बात की है कि हिंदी दिवस पर औपचारिकताएं निभाने से ज्यादा कुछ किया जाए। हिंदी को इतना समृद्ध बनाया जाए, ताकि यह पूरे राष्ट्र में आसानी से स्वीकार्य हो और राष्ट्र को सचमुच एक सूत्र में बांध कर रख सके। साथ ही कानून में ऐसे प्रावधान किए जाएं, ताकि किसी प्रदेश में राष्ट्रभाषा अपमानित या प्रतिबंधित न हो। हिंदी से जुडे साहित्यकारों, कलाकारों, पत्रकारों, नेताओं के साथ-साथ राष्ट्रभाषा के तमाम शुभचिंतकों को इस पर गंभीरता से सोचना होगा।

4 टिप्‍पणियां:

राजीव उत्तराखंडी ने कहा…

हिंदी दिवस पर आपको बधाई

Dr. Ashok Kumar Mishra ने कहा…

aapney bahut sahi likha hai. hindi ko lekar vyapak drishtikon ki jaroorat hai.

अनुनाद सिंह ने कहा…

आपकी सारी बातें बहुत सम्यक लगीं। मेरा खयाल है कि प्रदेशों को अपनी मातृभाषा में अधिकादिक कार्य और शिक्षण आदि करना चाहिये। इससे हिन्दी को भी लाभ होगा। किन्तु एक राष्ट्र में संघीय भाषा का जो स्थान और सम्मान होना चाहिये, उसका भी ध्यान रखा जाना चाहिये।


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"... हिंदी को इतना समृद्ध बनाया जाए, ताकि यह पूरे राष्ट्र में आसानी से स्वीकार्य हो और राष्ट्र को सचमुच एक सूत्र में बांध कर रख सके।"

लेकिन मुझे लगता है कि आपका यह वाक्य अनावश्यक है। हिन्दी के दुश्मन अक्सर इस तरह के वाक्य का प्रयोग करते हैं ताकि हिन्दी लागू करने में व्यवधान बना रहे।

बेनामी ने कहा…

खरगोश का संगीत राग रागेश्री पर आधारित है
जो कि खमाज थाट का सांध्यकालीन
राग है, स्वरों में कोमल निशाद और बाकी स्वर शुद्ध लगते हैं, पंचम इसमें वर्जित है, पर हमने इसमें अंत में पंचम
का प्रयोग भी किया है, जिससे इसमें राग बागेश्री भी झलकता है.
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हमारी फिल्म का संगीत वेद नायेर ने
दिया है... वेद जी को अपने संगीत कि प्रेरणा जंगल में चिड़ियों कि
चहचाहट से मिलती है.
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