शनिवार, सितंबर 27, 2008

वीसी साहब! आपके इरादे नेक नहीं लगते

कुछ लोग काम करने की जगह ढिंढोरा ज्यादा पीटते हैं। ऐसा ही कुछ जामिया मिलिया इसलामिया विश्वविद्यालय के कुलपति मुशीरुल हसन कर रहे हैं। आपने पहले बकायदा संवाददाता सम्मेलन बुलाकर धमाकेदार ऐलान किया कि आतंकी बताए जा रहे अपने दो छात्रों को आप कानूनी मदद मुहैया कराएंगे। फिर लॉबिंग में जुट गए और शुक्रवार को केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री अर्जुन सिंह के यहां मत्था टेक आए। नतीजा यह हुआ कि जहां कांग्रेस नेता और रामविलास पासवान सहित कई केंद्रीय मंत्री आपके समर्थन में ताल ठोंक रहे हैं, वहीं भाजपाई विरोध में मुखर हैं।
अजी जनाब! आपको अपने बच्चों की मदद करनी थी, करते। किसने रोका है। मदद तो करनी ही चाहिए एक गुरु को अपने शिष्यों की। पहले उन्हें बेगुनाह साबित करते, फिर उस साजिश को भी बेनकाब करते जो आपकी नजर में रची गई थी। लेकिन आपने कुछ करने से पहले चीख-चिल्ला कर एक बात साबित कर दी है कि आपके इरादे काम मुकम्मल होने से ज्यादा पब्लिसिटी पाने की है। जहां तक मैं जानता हूं, इसलाम में जब जकात दी जाती है तो किसी को पता नहीं चलता। यही शर्त मददगार के लिए भी लागू होती है। लेकिन मदद देने से पहले उसे इस तरह से प्रचारित करने के पीछे छिपी आपकी मंशा खतरनाक लगती है।
हिंदुस्तान में आज भी लोग जब अपनी औलाद खराब निकल जाती है तो अखबारों में इश्तिहार छपवा देते हैं कि हमारा इससे कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन उसी हिंदुस्तान का कानून फांसी की सजा पाए गुनहगार से भी उसकी आखिरी इच्छा पूछता है। हमारा कानून सबको कानूनी मदद भी देता है। आप भी दे रहे हैं। यह कतई गुनाह नहीं है। लेकिन इसके पीछे जो राजनीति हो रही है, वह गुनाह है।
मेरा आपसे एक सवाल है, जबसे होश संभाला कभी मुरादाबाद में दंगे देखे तो कभी इलाहाबाद में, कभी मेरठ को जलते देखा तो कभी गुजरात को, या आपलोगों ने शिद्दत के साथ कोई लड़ाई लड़ी? नहीं न। अगर लड़ी होती तो आज पुलिस फोर्स में पढ़े-लिखे मुसलमान युवकों की संख्या काफी होती। जनाब! आप उस यूपीए की गोद में बैठ रहे हैं, जिसके नेताओं ने पिछले करीब पांच सालों में मुसलिम वोट बैंक के लिए मौके मिलते ही घड़ियाली आंसू बहाने के अलावा कुछ खास नहीं किया। आप लोग सच्ची बात करने में क्यों हैं? क्या आपने वह कानून पढ़ा है, जिसे पोटा की जगह कांग्रेस ने बनाया है? सिर्फ नाम हटाया है, प्रावधान वही हैं।
आतंकवाद का न कोई धर्म होता है, न ही ईमान। गुरुओं ईमान जरूर होता है। सबसे पहले
गुरुओं को अपने अंदर झांक कर देखना पड़ेगा कि उनकी शिक्षा में कहां कमी रह गई जो हालात इतने खराब हो रहे हैं और युवा भटक रहे हैं।
मेरी दुआ है कि आप अपने मकसद में कामयाब हों और अपने बच्चों को बेगुनाह साबित कर सकें। लेकिन अगर वे वाकई में आतंकवादियों की नापाक साजिशों का शिकार होकर गलत रास्ते पर चल निकले हैं, तो उन्हें रास्ते पर लाने के लिए आपने कुछ सोचा है? अगर आपके छात्रों पर आतंकियों का साथ देने का आरोप सच साबित हो गया तब आप या करेंगे? यह भी आपको अभी ही सोचना पड़ेगा। आपके साथ उन तमाम लोगों को सोचना पड़ेगा, जिन्होंने इस मामले को राजनीतिक बना दिया है।

15 टिप्‍पणियां:

राजीव उत्तराखंडी ने कहा…

रंजन जी, आपकी बातें एकदम झिझाे़डने वाली होती हैं। हम तो जाग गए और उम्मीद है कि और लोग भी जाग जाएंगे।

ओमप्रकाश तिवारी ने कहा…

आतंकवाद का न कोई धर्म होता है, न ही ईमान। गुरुओं ईमान जरूर होता है। सबसे पहले गुरुओं को अपने अंदर झांक कर देखना पड़ेगा कि उनकी शिक्षा में कहां कमी रह गई जो हालात इतने खराब हो रहे हैं और युवा भटक रहे हैं।

Gyan Darpan ने कहा…

वीसी साहब को अपना काम सिर्फ़ पढाने तक ही सिमित रखना चाहिए किसी अपराधी को कानूनी सहायता देना यूनिवर्सिटी का काम नही ,यदि इनके छात्र निर्दोष है तो पुलिस जाँच के बाद अपने आप छुट जायेंगे ,पिछले दिनों जयपुर में भी एक छात्र शक के आधार पर पकड़ा गया था लेकिन जाँच में निर्दोष पाए जाने पर छुट भी गया | अतः जो निर्दोष है उन्हें डरने की कोई जरुरत नही है उन्हें तो पुलिस का सहयोग करना चाहिय |

हर्ष प्रसाद ने कहा…

मुबारक हो रंजन साहब, फैज़ का एक कतआ आपकी नज़र है

"हम परवरिश-ऐ-लौह-ओ-कलम करते रहेंगे,
जो दिल पे गुज़रती है रक़म करते रहेंगे,
इक तर्ज़-ऐ-तगाफुल है,सो हो उनको मुबारक,
इक अर्ज़-ऐ-तमन्ना है,सो हम करते रहेंगे."

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत खुब लिखा हे आप ने, लेकिन इस बारे हमे कोई भी जानकारी नही, यह वीसी कोन हे क्या हे, लेकिन आप का लेख बहुत पंसद आया ओर एक गुरु को गुरु बनाना चाहिये जज नही.
धन्यवाद

Dr. Ashok Kumar Mishra ने कहा…

sach ko parakhney key baad hi kadam uthya jana chahiye.

Unknown ने कहा…

जोरदार… शायद सम्बन्धित पक्षों को अकल आये…

प्रदीप मानोरिया ने कहा…

लाज़बाब मज़ा आ गया सर ... मेरे ब्लॉग पर सरकारी दोहे पढने के लिए आपको सादर आमंत्रण है

sanjay patel ने कहा…

बहुत ख़ूब रंजन भाई,
एक सांस में पढ गया.

भुवन भास्कर ने कहा…

behatreen lekhan, damdar abhivyakti...aise hi likhte rahiye

Ashok Pandey ने कहा…

खरी खरी बात लिखी है आपने। अच्‍छा लगा आपको पढ़ना।

Unknown ने कहा…

guruji to apna gurudram niba rahi hain.

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

सटीक टिप्पणी है आपकी...
इस मुद्दे पर देशव्यापी बहस की जरूरत है.

अनिल भारद्वाज, लुधियाना ने कहा…

रंजन जी हमे भी जज की भूमिका में नहीं आना चाहिए। पाप से घृणा करो पापी से नहीं। व्यक्ति अपनी जिंदगी में बहुत बार जाने अनजाने गलती कर देता है और उस गलती का एकमात्र हल पश्चाताप है। गुरुजनों और अग्रजों का यह नैतिक दायित्व है कि वह अपने बच्चों की इमानदार डिफेंस करें।

कडुवासच ने कहा…

अत्यंत प्रभावशाली अभिव्यक्ति है।