सोमवार, सितंबर 15, 2008

'बफादारों` की इस बेशर्मी पर क्या कहेंगे आप?

इस पोस्ट में सबसे पहले मैं हृदय से बधाई देना चाहूंगा उन समाचार चैनलों को जिन्होंने दिल्ली में हुए आतंकी धमाकों की दुखद घड़ी में गृहमंत्री की 'गंभीरता` का खुलासा किया। नेताआें को गिरगिट की तरह रंग बदलते सुना था, लेकिन एक ऐसा नेता जिसमें पार्टी आलाकमान के प्रति वफादारी के अलावा और कोई भी रंग न हो, हर तरह के मसलों से बेपरवाह कपड़े बदलने में जुटा हुआ है। ऐसे में यह शक होने लगता है कि कहीं मंत्री के कपड़े भी धमाकों के खून से सने तो नहीं थे। इस पर यकीन करने को जी तो नहीं करता, लेकिन इतना तो तय है कि देश को खून के और धब्बों से बचाने के लिए ऐसे गृहमंत्री को तुरंत बेशर्मी त्याग कर जिम्मेदारी किसी जिम्मेदार व्यिक्त के हवाले कर देनी चाहिए।
बेशर्मी यहीं खत्म नहीं हो जाती। कांग्रेस के एक प्रवक्ता तो इस 'बफादार मंत्री` के साथ बफादारी निभाने में बेशर्मी की सारी हदें पार करते दिख रहे हैं। यकीन नहीं होता है तो सोमवार को टीवी चैनलों पर दिया उनका यह बयान देखिए- 'ऐसे विकट समय में इस तरह की बातें कर देश में अस्थिरता पैदा करने की कोशिश की जा रही है।` यानी यह देश तभी तक स्थिर है, जब तक मंत्री जी पल-पल कपड़े बदलते रहेंगे। जिन टीवी चैनलों और पत्रकारों को हम बधाई दे रहे हैं, प्रवक्ता महोदय के शब्दों में वे देश में अस्थिरता पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं।
इन बेशर्मों की जमात के साथ खड़े लालू प्रसाद यादव भी बधाई के पात्र हैं, जिन्होंने कुछ दो टूक तो कुछ इशारों-इशारों में काफी कुछ कह दिया। मंत्रिमंडल की तुरंत बैठक बुलाने और इस गंभीर मसले का ठोस हल निकालने की लालू की मांग सराहनीय है।
'बफादारों` की इस बेशर्मी पर या कहेंगे आप? सवाल देश को खून के और धब्बों से बचाने का है, इसलिए आपसे एक टिप्पणी की गुजारिश कर रहा हूं।

5 टिप्‍पणियां:

ओमप्रकाश तिवारी ने कहा…

सही लिखा आपने। पर शरम उऩहें नहीं आती।

pratik awasthi ने कहा…

ranjan ji is mamle me homeminister ka istifa na dena bhi besarmi ki had hai. mai aap se sahmat hu.

राज भाटिय़ा ने कहा…

अजी शर्म तो हमे आनी चाहिये क्यो की हम ने ही तो इन्हे चुना हे, ओर फ़िर चुनेगे,बार बार चुनेगे, हमे अपने गलत निर्यणॊ पर शर्म आनी चाहिये, हम हर पांच साल बाद मोका मिलता हे कि इन्हे उठा कर बाहर फ़ेंके, जो दल बदलू हो उन्हे कभी मत चुनो... जब तक हम नही जागे गे, ऎसा ही होता रहे गा.... जागो

आप का लेख बहुत ही सुन्दर ओर सटिक हे, लेकिन क्यो हम बार इन्हे चुनते हे...
धन्यवाद

Hari Joshi ने कहा…

राज जी की बात से मैं एकदम सहमत हूं कि शर्म तो हमें आनी चाहिए। हम चुनते हैं और फिर गालियां देते हैं। बार-बार चुनते हैं और फिर गालियां देते हैं। गलत लोगों को चुनना और फिर गालियां देना हमारा चरित्र बन गया है।

रंजन राजन ने कहा…

मेरे चिट्ठे पर पधारने के लिए आप सभी का आभार।
राज भाटिया जी और हरि जोशी जी की राय से मैं सहमत नहीं हूं। जनता ने तो इस मंत्री महोदय को लोकसभा चुनाव में हराकर अपना सही फैसला सुना दिया था। लेकिन आलाकमान से वफादारी काम आ गई और इन्हें तोहफे में मिल गया देश के गृह मंत्री का पद। लग रहा था कि शायद आलाकमान ने इनकी कोई काबिलियत पहचानी होगी, लेकिन...