बुधवार, सितंबर 17, 2008

हैरान करता है मीडिया का बदलता रवैया

राष्ट्रीय आपदा की हकीकत
बिहार में कोसी नदी का जलस्तर घटने के साथ बाढ़ का कहर भले ही कुछ थम गया हो, लेकिन लेकिन करीब एक माह पहले (१८ अगस्त) आई इस राष्ट्रीय आपदा से प्रभावित ४० लाख से अधिक लोगों की जिंदगी अब भी थमी है। लाखों बेघर लोग, जो किसी तरह बच गए, उनके जीने का सारा सामान बाढ़ की भेंट चढ़ गया है। करीब साढ़े तीन सौ राहत शिविरों में तीन लाख से अधिक लोग खाली हाथ जिंदगी की नई शुरुआत के लिए तानाबाना बुन रहे हैं। देशभर से मिल रही सहायता से उन्हें और उनके परिजनों को कुछ दिनों तक भूख से तो बचाया जा सकता है, लेकिन जिंदगी कुछ दिनों की नहीं होती। हजारों लोगों का अता-पता नहीं है। खतरे और भी हैं- यूनीसेफ की टीम ने प्रभावित इलाके में स्वास्थ्य, पोषण, पानी और साफ-सफाई पर विशेष जोर देते हुए संक्रामक बीमारियां फैलने की आशंका जताई है। कोसी का जलस्तर एक बार फिर चढ़ने की आशंका भी जताई जा रही है।
और राष्ट्रीय मीडिया का रवैया
सबसे तेज होने और खबरों से पहले पहुंचने जैसे नारे देने वाले राष्ट्रीय चैनलों और ज्यादातर अखबारों को इस राष्ट्रीय आपदा की भनक कई दिनों बाद लगी। भनक लगने के बाद भी दो-तीन दिनों तक तो एक साधारण सी खबर के रूप में इसे निपटा दिया गया। जब आपदा की गंभीरता का अहसास हुआ तो दो-तीन दिनों के लिए विशेष टीम भेज कर सक्रियता दिखाने की कोशिश की। इसका असर भी हुआ, केंद्र सरकार ने सहायता मंजूर करने में आनाकानी नहीं की। लेकिन चंद दिनों बाद ही राष्ट्रीय मीडिया से बिहार की खबरें ऐसे गायब हो गइंर्, जैसे वहां सबकुछ सामान्य हो गया हो। जबकि आज अकेले बिहार के बाढ़ प्रभावित इलाके से ही रोज दर्जनों 'ह्यूमेन एंगिल स्टोरी` (जीवन के दर्द को यही नाम दिया जाता है मीडिया में) कवर की जा सकती है। दिनभर इस आस में कई बार न्यूज चैनल बदल कर देखता हूं कि शायद किसी को दर्द का अहसास हो रहा होगा, लेकिन वहां तो दिखती है कामेडी और गीतों की महफिल। राष्ट्रीय अखबारों के अंदर के पन्ने पलटता हूं तो वहां गली-मुहल्लों की खबरों और विज्ञापन के बाद इतनी जगह नहीं बचती कि बिहार के दर्द को भी समेटा जा सके। कुल मिलाकर व्यावसायिकता के खेल में मीडिया का बदलता रवैया हैरान करता है।

3 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

सही कह रहे है, व्यवसायिकता का खेल है.

PD ने कहा…

sahi kah rahe hain..
kal hi ek mitra se is par hi baat ho raih thi, jinke sath main baadh raahat karyo se juda hua hun..

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

बिहार की बाढ़ आपदा से किसी को क्या मिलना है? आतंकवाद और उस के द्वारा दी गई जानों की आहूती से प्रज्वलित साम्प्रदायिक उन्माद अधिक वोटों की सृष्टि कर सकता है।