शुक्रवार, सितंबर 26, 2008

ब्लागर की भावना का फर्जी एनकाउंटर

हिंदी ब्लाग की बढ़ती लोकप्रियता के बीच यह सवाल बहस का विषय बनता जा रहा है कि अनाम टिप्पणीकारों को कितनी आजादी दी जाए? सुलझे ब्लागर अपनी पोस्ट पर पक्ष-विपक्ष में की गई तमाम टिप्पणियों का तहेदिल से स्वागत करने को हमेशा उत्सुक रहते हैं। लेकिन पहचान छिपाकर की गई अनाम टिप्पणियां अकसर ब्लागरों की भावनाओं का फर्जी एनकाउंटर करती दिख रही हैं। सुप्रतिम बनर्जी की ताजा पोस्ट 'बटला हाउस : क्या सच, क्या झूठ` और इस पर अनाम 'शूटर` द्वारा दागी गई टिप्पणियों से इसे समझा जा सकता है।
सुप्रतिम ने दिल्ली स्थित बटाला हाउस में हुए एनकाउंटर को अपनी ओर से सही या गलत न ठहराते हुए दोनों पक्षों की भावनाओं को पर्याप्त सम्मान दिया गया है। उन्होंने एनकाउंटर को लेकर आम भारतीय के मन में उठ रहे तमाम सवालों को साहस के साथ बड़ी ही संजीदगी से रखा है। साथ ही अपनी ओर से दो अत्यंत सामयिक मुद्दे उठाए हैं-
'एनकाउंटर फर्जी था या नहीं, ये तो अलहदा मसला है, लेकिन अगर मुस्लिमों की एक बड़ी आबादी में आजादी के इतने सालों बाद भी पूरी व्यवस्था के खिलाफ ऐसा घोर अविश्वास है, तो ये जरूर विचारणीय है।`
'एनकाउंटर को लेकर उठे सवाल और जारी बहस से एक बात तो साफ हो गई है कि अब लोग पहले की तरह सिर्फ पुलिस की बताई कहानी पर ही आसानी से ऐतबार करने को तैयार नहीं हैं... और ये व त की जरूरत है कि पुलिस भी अपने कामकाज में पारदर्शिता लाए। ताकि एनकाउंटरों पर सवाल तो उठे, लेकिन अगर पुलिस सही है तो उसके पास इन सवालों का सही जवाब जरूर हो।`
ऊपर के दोनों सवालों के पीछे छिपी ब्लागर की वास्तविक भावना को उनकी पूरी पोस्ट पढ़े बिना नहीं समझा जा सकता। लेकिन पोस्ट पढ़े बिना ही धड़ाधड़ टिपियाणे वाले एक पाठक को इनमें से किसी सवाल से ऐसी मिर्ची लगी कि उन्होंने लिख डाला- 'धिक्कार है आप और आप जैसे बेबकूफ लोगों पर।` उनकी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए अनाम 'शूटर` ने ठोका - ' क्या करना चाहिए पुलिस को? पहले मीडिया को फोन करे कि देखो आतंवादी वहां छिपे है हम जा रहे हैं आप भी कैमरा ले लो?` हालांकि इससे आगे बहुत कुछ लिखकर इस 'शूटर` ने अपनी गंभीरता का परिचय भी दिया है लेकिन अपनी पहचान छिपाकर वार करने को क्या कहेंगे?
इस टिप्पणी पर हरि जोशी ने बहुत सही फरमाया है- 'है ईश्वर, इन नासमझ टिप्पणीकर्ताओं को क्षमा करना। ये नहीं जानते कि इनमें और बटला हाउस पर खड़े होकर बकबास करने वालों में कोई फर्क नहीं हैं। इन सभी के पास एक जैसा ही चश्मा है, सिर्फ ब्रांड बदल गया है।` लेकिन अनाम शूटर ने उनपर जवाबी फायरिंग भी कर दी- '...तुम सेन्सेशनल सीकर तो जरूरत से ज्यादा अक्ल वाले हो, एम्बेड जर्नलिस्ट हो, तुम्हारी जगह कहां होगी?`
ऐसी टिप्पणियां गंभीर मुद्दों पर सार्थक बहस को बकबास में डुबो देती हैं। ऐसे अनाम टिप्पणीकारों को क्या कहेंगे आप?

7 टिप्‍पणियां:

राज भाटिय़ा ने कहा…

डरपोक, बुजदिल, कायर जिन्हे अपने आप कर विश्च्वास नही हे वरना अपनी पहचान बता कर बात करे.
धन्यवाद

Anil Pusadkar ने कहा…

मोडरेशन हर मर्ज़ की दवा है भाई साब

Gwalior Times ग्वालियर टाइम्स ने कहा…

चाणक्‍य ने कहा, मुण्‍डे मुण्‍डे मतिर्भिन्‍ना, अर्थात जितनी खोपड़ीयां, उतनी ही राय या विचार ।
लोकतंत्र है भइये, सबको कहने दो, सबकी सुनो अपनी भी कह लो क्‍या दिक्‍कत है, ''सार सार को गहि रहो, थोथा देओ उड़ाय '' तुलसी या संसार में भांति भांति के लोग, सबसों हिल मिल चालिये नदी नाव संजोग ।
सामने वाला अपनी नजर में सही होता है, लेकिन आपकी नजर में गलत, आप अपनी नजर में सही हो सकते हैं लेकिन दूसरों की नजर में गलत । ये दुनियां इसी सिद्धान्‍त पर टिकी है ।
माडरेशन लगा दीजिये टिप्‍पणी पसन्‍द आये तो प्रकाशित कर दीजिये वरना धता बता दीजिये ।

Udan Tashtari ने कहा…

इसीलिये मॉडरेशन की दरकार है.

बेनामी ने कहा…

रंजन जी,
राज भाटिया जी सही बात कह रहे हैं। मैने भी अनामी भाई को दोबारा जबाब दे दिया है लेकिन ये उर्जा का अपव्‍यय है। दरअसल सबसे खतरनाक बात ये है कि आतकंवाद तो मुटृठी भर हैं लेकिन आतकंवाद पैदा करने वाले दिमागों की ग्रोथ रेट बहुत बढ़ गई है।

डॉ .अनुराग ने कहा…

मोडरेशन,मोडरेशन,मोडरेशन......

सुप्रतिम बनर्जी ने कहा…

रंजन भाई,
बटला हाउस एनकाउंटर पर पोस्ट लिखने के तुरंत बाद जब मैंने किसी अनाम पाठक की वो टिप्पणी पढ़ी, जिसमें उन्होंने मुझे "बेवकूफ़" (बेबकूफ -- जैसा कि लिखा है) लिखा था, यकीन मानिए मैं सकते में आ गया। इसलिए नहीं कि मुझमें अपनी आलोचना सुनने की ताक़त नहीं है, बल्कि इसलिए कि मैंने अपनी पोस्ट को भरसक तार्किक और न्यायसंगत तरीके से लिखने की कोशिश की थी। इसके बावजूद ऐसी अजीबोग़रीब टिप्पणी आई। वैसे अगर टिप्पणी करनेवाले पाठक ने मुझे बेवकूफ़ करार देने की वजह बता दी होती, तो शायद ये "तारीफ़" मुझे हज़म भी हो जाती। बहरहाल, मैं लिखता सभी के लिए हूं लेकिन सभी से एक जैसी राय मिले, ऐसी उम्मीद कतई नहीं रखता। आपका ख़ास तौर पर शुक्रगुज़ार हूं कि आपने मेरा पोस्ट पढ़ा और मेरी बात को ठीक उसी रूप में समझा, जिस रूप में समझाना चाहता था।
शुभकामनाएं।