एक सप्ताह के अंदर पहले हिंदुस्तान की राजधानी नई दिल्ली, फिर यमन की राजधानी साना और अब पाकिस्तान की राजधानी इसलामाबाद। आतंक के धमाके जहां कहीं भी हों, पीड़ा एक जैसी होती है और पीड़ित आम निर्दोष लोग ही होते हैं। इनकी जितनी भी निंदा की जाए, कम होगी। इस पीड़ा ने मुझे इतना व्यथित कर दिया, कि पिछले कुछ दिनों से मैं कोई पोस्ट नहीं डाल सका।
मुझे गर्व है कि मैं ऋषि मुनियों की धरती हिंदुस्तान में पैदा हुआ, जहां कबीर, रहीम, तुलसीदास और गुरु नानक जी जैसे महान संतों, कवियों और गुरुआें की वाणी जीने की सच्ची राह दिखाती है। मुझे बचपन से ही सिखाया गया था-
जो तोको कांटा बुबै, ताही बोय तू फूल।
तोको फूल के फूल हैं, वाको हैं त्रिशूल।।
दुर्भाग्य से इसी धरती पर पैदा हुए हमारे भाई, जिन्होंने बंटवारे के बाद न केवल पाकिस्तान नाम से अपनी अलग दुनिया बसा ली, बल्कि इस सीख के विपरीत राह पकड़ ली। 'अहिंसा परमो धर्म:` की सीख के साथ महात्मा गांधी ने भले ही हिंदुस्तान को आजादी दिला दी, लेकिन इसी हिंदुस्तान से अलग हुए हमारे पड़ोसियों ने इसे भी अनसुना कर दिया। यह और बात है कि उनके पैगम्बर भी अहिंसा की ही सीख देते हैं, लेकिन उसी पैगम्बर के नाम पर वे पूरी दुनिया के लिए हिंसा और आतंकवाद रूपी कांटे की फसल को सींचते रहे हैं। आज उनकी कांटे की फसल पक कर तैयार हो चुकी है। ये कांटे पूरी दुनिया को चुभ रहे हैं, तो जिस धरती पर फसल बोई गई है उसे कैसे महफूज रखेंगे। ऐसे में हमारा व्यथित हृदय बस यही कह रहा है- बोया बीज बबूल का, आम कहां से पाओगे? साथ में यह गुहार भी लगा रहा है, बहुत हुआ भाई, कांटों की फसल को और खाद-पानी न दो। आओ, साथ मिलकर अमन के बीज बोते हैं, जिससे उपजे शांति के फूल दुनियाभर में खुशबू बिखेरेंगे।
13 टिप्पणियां:
क्या खूब लिखा है आपने। आओ, साथ मिलकर अमन के बीज बोते हैं, जिससे उपजे शांति के फूल दुनियाभर में खुशबू बिखेरेंगे।
हमलोग सब आपके साथ है। शुभकामनाएं।
सुंदर
सही है ......
इस्लामाबाद में पूरे 1000 किलो विस्फोटक से भरा ट्रक मैरियट होटल में टकरा दिया जाए। इस खबर को पढ़ते ही मेरे दिमाग में पहला सवाल आया था कि आतंकवादियों को इतनी भारी मात्रा में विस्फोटक मिलता कहां से हैं। आतंकवादियों के साथ ही हथियारों के इन सौदागरों की भी शिनाख्त ज़रूरी है।
बहुत ही सुन्दर ओर साफ़ शब्दो मे आप ने हम सब के दिलो की बात लिख दी हे....
धन्यवाद
आओ, साथ मिलकर अमन के बीज बोते हैं, जिससे उपजे शांति के फूल दुनियाभर में खुशबू बिखेरेंगे।
एक आम आदमी का दर्द आपकी बातों से झलक रहा है। आपने बिल्कुल सही कहा कि-
पैगम्बर भी अहिंसा की ही सीख देते हैं, लेकिन उसी पैगम्बर के नाम पर वे पूरी दुनिया के लिए हिंसा और आतंकवाद रूपी कांटे की फसल को सींचते रहे हैं।
Bahut accha.
बहुत उम्दा आलेख-सच सच साफ साफ!! बधाई.
" very well said, and title of the post itself a great description"
Regards
बिल्कुल सही कहा .दिलो की बात लिख दी हे.
सचमुच कहा आपने सबको अपनी बोयी फसल खुद काटनी पड़ती है....
और आपके अद्भुत टिप्पणी के लिए धन्यवाद !!!
रंजन भाई,
ब्लॉग पर विचरने वाले हर शख्स का दर्द कमोबेश एक जैसा ही है। आपका पोस्ट पढ़ कर ऐसा ही लगा। यूं ही लिखते रहिए।
nishpaksha aur nirbheek lekhan ke liye dhanyawwad.
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Perhaps there you will find answer to some of your queries. Thanks for such a nice blog post.
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