जब पड़ोसी के घर क्राइम होता है तो हम पुलिस और कानून-व्यवस्था की खामियों को कोसते हैं। उसी पड़ोसी के घर जब आग लगती है तो हम पानी डाल कर आग बुझाने में जुट जाते हैं, योंकि हमें डर होता है कि पड़ोसी के घर की आग कहीं हमारे घर को भी न जला दे। लेकिन आज हालत यह है कि पड़ोसी की लगाई हुई आतंक रूपी आग हमारे और पड़ोसी दोनों के घरों को जला रही है। ऐसे में खतरा पूरे 'मोहल्ले` के जल जाने का पैदा हो गया है। इसलिए सचेत उन्हें तो होना ही पड़ेगा जिनके घर में आग लगी है, उन्हें भी चौकस होना होगा जो अभी तक सुरक्षित है। आतंकवाद का खतरा अब पूरी दुनिया के लिए एकसमान चिंता का विषय है।
साल भर पहले तक हिंदुस्तान में कहीं आतंकी घटना होती थी तो हमारे नेता इतना बयान देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते थे कि इसमें पड़ोसी देश का हाथ है। लेकिन आज आतंक के साथ इंडियन नाम भी जु़डता दिख रहा है। मामला सिर्फ नाम तक ही सीमित नहीं है, वास्तव में हमारे घर के बच्चे भी गुमराह होकर इस आग को हवा दे रहे हैं। आतंक के अड्डे अब शहरों, पहाड़ों और घने जंगलों तक ही सीमित नहीं हैं, मैदानी इलाकों में स्थित हमारे गांवों में भी पांव पसार रहे हैं। ऐसे में अब खुफिया एजेंसियों, पुलिस और कानून-व्यवस्था की खामियों को कोसने भर से काम नहीं चलने वाला। जरूरत है गुमराह बच्चों को फिर से सही राह पर लाने की। जरूरत है जाति, धर्म, क्षेत्र और भाषा की बंदिशों से ऊपर उठकर सामाजिक तानाबाना और आपसी भरोसे को इतना मजबूत बनाने की, ताकि हमारे बीच से कोई आतंकी पैदा न हो। साथ में जरूरत है कानून को इतना कठोर बनाने की, ताकि कोई विदेशी ताकत हमारे किसी और बच्चे को गुमराह न कर सके। आशा है हमारे नेता भी मामले की गंभीरता को समझेंगे और दलगत भावना से ऊपर उठकर इस आग को बुझाने के लिए एकजुट प्रयास करेंगे।
12 टिप्पणियां:
apne sahi farmaya
मुलायम सिंह जैसे लोग ओर फिलहाल मीडिया टी आर पी की दौड़ में ..पुलिस वालो का मनोबल गिरा रहे है.
bahut samayik vichaar yogy post. badhai.
हमारे नेता यही तो हे इस समस्या को यहां तक लाने वाले, आप का लेख सच मे बहुत ही सटीक हे आंखे खोलने वाला, अगर अब भी ना आंखे खुली तो ....
धन्यवाद
प्रभावी एवं विचारणीय आलेख!!
बहुत सही व सार्थक विचार।
सही कह रहे हैं...चाहे नेता हो या कोई और...टी आर पी पर पगलाये हुए हैं।
आतंकवाद से लड़ने के लिए सतर्कता बहुत जरूरी है। यह सतर्कता सरकार, प्रशासन, खुफिया एजेंसियों और पुलिस के साथ ही समाज के प्रत्येक नागरिक में होनी जरूरी है।
प्रिय रंजन, वाकई में पड़ोसी के घर में आग लगे तो अपना घर जलने का खतरा होता है। आतंकवाद पर कड़ा कानून बनाने से बेहतर यह होगा कि जो कानून है उसका ही उपयोग कर लिया जाए। कांग्रेस ने पोटा हटाने के बाद जो कानून बनाया है उसका नाम कुछ भी न हो लेकिन प्रावधान सब वही है। जो पार्टियां नकाब पहनकर राजनीति करती है वह वैसी ही होती है। तुम करो तो पाप हम करें तो पुण्य आतंकवाद से तो हम हमेशा लड़े और जीते भी। राम के काल से लेकर आदि गुरू शंकराचार्य के काल तक। जब आप जैसे लोगों की कलम भी इसी मुद्दे पर चलने लगी है तो साफ है िक विचार ने काम शुरू कर दिया है। पहले विचार आता है फिर उसका क्रियान्वयन होता है। तो जीत तो हमारी ही होगी। कलम को चालू रखें
आपने बहुत सही कहा है. आतंकवाद के बारे में जब मैं सोचता हूँ तो मेरे को याद आता है १९८९ जब मैं बहुत छोटा था और मम्मी पापा के साथ कश्मीर का प्रोग्राम बन रहा था. हम लोग कश्मीर गए थे. उस समय वहां आतंकवाद शुरू हुआ ही था. मैं तब इन चीजों को नहीं समझता था. बस इतना ही समझ आता था, की कहीं प्रोग्राम कैंसल न हो जाए.
आज, इतने दिनों के बाद. इतने सालों के बाद, मैंने जब इन धमाको को अपने शहर बनारस के मन्दिर में सुना और फिर अभी मैं जहाँ नौकरी कर रहा हूँ बंगलोर शहर के सड़कों पे सुना तो मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा था. अभी मैं कुछ वक्त के लिए देश के बाहर आया हूँ, और पता चला की दिल्ली में विस्फोट हुआ. जाने क्यों इस बार नया नहीं लगा.
शायद अब लगता है - आदत डालनी होगी.
dear ranjan ji
written beautifully
if possible visit my blog
atankwadi pareshan hey
regards
कमाल है भाई खूब लिखते हो।
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